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लेखनी कहानी -28-Sep-2022 जीना इसी का नाम है

यारों की महफिल जमी थी । प्रकाश ने सेवानिवृत्त होने पर अपनी कॉलोनी के सेवानिवृत्त लोगों का एक क्लब बना लिया था और कॉलोनी के पार्क में सब लोग सांय 5 बजे से 6 बजे तक खूब हंसी मजाक करते थे । बीते दिनों के संस्मरण सुनाते थे । सदाबहार गीत गाते थे । शेरो शायरी करते थे और जमकर ठहाके लगाते थे । पूरी कॉलोनी में इस क्लब की चर्चा होने लगी थी । जो लोग मुस्कुराना ही भूल गये थे वे अब ठहाके लगाने में सबसे आगे थे । ऐसा लग रहा था कि इन सबका बचपन और जवानी एक साथ लौट आई थी । जवान लोग भी जलने लगे थे इनकी बिंदास जिंदगी से । 

इस क्लब में चिर युवा दिवाकर जी थे तो मोहम्मद रफी साहब के फैन सूर्या जी भी थे । गजल गायक प्रभाकर जी थे तो मुकेश के जबरन फैन सनातन जी भी थे । वर्मा जी को शेरो शायरी का जबरदस्त शौक था तो शर्मा जी चुटकुलों के मास्टर थे । कुल नौ व्यक्ति थे क्लब में जो "नवरत्नों" के नाम से जाने जाते थे । जब से क्लब में इन सबका आना हुआ है तब से ही इनके चेहरों पर और निखार आ गया था । सभी को लगने लगा था कि सेवानिवृत्ति के बाद दुगने आनंद के साथ भी जिया जा सकता है । प्रकाश जी तो जहां जाते हैं वहां प्रकाश ही फैलाते हैं । तो यहां पर भी सबकी अंधेरी सी जिंदगी में प्रकाश भर रहा था । 

आज प्रकाश का जन्म दिन था । सब लोगों के हृदय से जैसे रसधार फूट रही थी । इतनी जल्दी सब लोग घुल मिल जायेंगे , ये किसी ने सोचा नहीं था । क्लब में जैसे ही प्रकाश जी ने कदम रखा वैसे ही "बार बार दिन ये आये, बार बार दिल ये गाये तू जिये हजारों साल ये मेरी है आरजू , हैप्पी बर्थडे टु यू" गाना गाने लगे थे सब लोग । प्रकाश जी का दिल गदगद हो गया इतने भावभीने सम्मान से । और फिर उसके बाद ठहाकों और गानों का दौर चल निकला । दिवाकर जी तो आज जैसे अपने आपे में ही नहीं थे । बिल्कुल बच्चों की तरह व्यवहार कर रहे थे वे । 

अभी महफिल चल ही रही थी कि दिवाकर जी का मोबाइल बज उठा । उन्होंने मोबाइल देखा और तुरंत खड़े हो गये "मैडम का कॉल है, अभी जाना पड़ेगा । सॉरी यारो" और वे दौड़ लिये । 

भगवान भी कैसे कैसे दिन दिखाता है । अच्छे खासे अधिकारी थे बैंक में दिवाकरजी । उनकी श्रीमती जी और उनके बच्चे , भरा पूरा परिवार है उनका । भगवान ने सब कुछ दिया था उनको । जीवन साथी के रूप में एक पत्नी, एक पुत्र, बहू, पोता । एक बेटी जो अपने ससुराल में मस्त जिंदगी जी रही है । पुत्र का करोडों का व्यापार है । और क्या चाहिए आदमी को ? पैसा, प्रतिष्ठा और प्यार । सब कुछ था दिवाकर जी के पास । ऐसा लगता था कि जैसे भगवान ने अपनी सारी कृपा उन्हीं पर बरसा दी हो ?  पर किसी की खुशी लोगों को कब पसंद आती है ? शायद किसी की नजर लग गई उनकी खुशियों को । 

छ: बरस पहले की बात है । सुबह सुबह दिवाकर जी जगे तो उन्होंने देखा कि उनकी पत्नी राधिका अभी तक उठी नहीं है । वैसे राधिका सुबह छ: बजे जग जाती थी मगर आज सात बजे तक भी नहीं जगी थी । एक बार तो दिवाकर जी ने सोचा कि सोने में देर हो गई होगी इसलिए देर तक सो रही होंगी । मगर उन्हें ध्यान आया कि वह तो उनसे पहले ही सो गई थी । तब उन्हें कुछ शक हुआ । उन्हों दो तीन आवाज दी "राधिका राधिका" । मगर कोई हलचल नहीं हुई । तब उन्होंने अपने बेटे शिव और बहू सरिता को आवाज लगाई । दोनों दौड़े दौड़े आये । तब तक दिवाकर जी राधिका को झिंझोड़ कर होश में लाने का प्रयास कर रहे थे । राधिका जी की आंखें धीरे से कुछ खुली मगर वह कुछ बोल नहीं पा रही थी । दिवाकर जी ने राधिका जी का हाथ अपने हाथ में लिया तो उन्हें वह हाथ एकदम ठंडा लगा । जैसे ही उन्होंने वह हाथ छोड़ा तो 'गद्द' की आवाज के साथ वह हाथ पलंग पर गिर पड़ा । दिवाकर जी चौंक गये । अब उन्हें कुछ कुछ समझ में आ रहा था कि राधिका जी को "पैरेलिसिस अटैक" हुआ है । उन्होंने घबड़ा कर शिव को गाड़ी निकालने के लिए कहा । 

शिव ने तुरंत गाड़ी लगा दी । सबने बड़ी मुश्किल से राधिका जी को गाड़ी में लिटाया और शहर के सबसे बड़े अस्पताल में ले गये । इमर्जेंसी में राधिका जी को दिखाया और दिन भर जांचों में निकल गया । शाम को रिपोर्ट आयीं और डॉक्टर ने पैरेलिसिस अटैक बता दिया । राधिका का पूरा शरीर सुन्न पड़ गया था । शरीर में कोई हलचल नहीं हो रही थी । इस घटना से दिवाकर जी का दिल दहल गया था । इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत से काम लिया । राधिका जी को आई सी यू में रखा गया । शहर के सबसे प्रसिद्ध न्यूरो फिजिशियन डॉक्टर बत्रा राधिका जी का इलाज कर रहे थे । जब जब भी उनसे राधिका जी के ठीक होने के बारे में दिवाकर जी पूछते, तब तब वे यही कहते "भगवान पर भरोसा रखो । वे बहुत दयालु हैं" । दिवाकर जी कुछ समझ नहीं पाते कि इसका मतलब क्या है ? क्या डॉक्टर फेल हो गया है जिससे उन्हें अब केवल भगवान भरोसे ही रहना है ? या डॉक्टर के प्रयास और भगवान के आशीर्वाद से कुछ बात बन रही है ? कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था उनके । तीन दिन तक राधिका जी की तबीयत ऐसी ही रही । ना हिलना ना डुलना । आई वी के माध्यम से बहुत हैवी डोज दी जा रही थीं और फिजियोथेरेपिस्ट लगातार अपना काम कर रहा था । 

तीन दिन बाद राधिका जी के बदन में थोड़ी सी हलचल हुई । आंखें भी पूरी खुल गई थीं और मुंह भी खुल गया था । हाथ पांवों में सुंई चुभोने पर दर्द का अनुभव होने लगा था । अब डॉक्टर बत्रा के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी । 
"भगवान ने आपकी प्रार्थना सुन ली है मिस्टर दिवाकर । अब राधिका जी में हलचल होनी शुरु हो गयी है जो रिकवरी का संकेत है । बहुत बहुत बधाई हो आपको" । डॉक्टर बत्रा ने दिवाकर का कंधा थपथपाते हुए कहा । 
दिवाकर जी की आंखों में आंसू आ गये थे । तीन दिन तक वे आशा और निराशा के भंवर में गोते लगाते रहे थे । कहीं से कोई अच्छी खबर नहीं आ रही थी । उनके और राधिका जी के सारे घरवाले आ चुके थे । सबको ढांढस बंधाते बंधाते दिवाकर जी का धीरज डांवाडोल हो गया था । वे मन ही मन रोते थे मगर होंठ चुप थे । आंखों में निराशा का अथाह समुद्र था । राधिका जी के साथ पिछले चालीस वर्षो से उन्होंने अच्छे और बुरे सब दिन देखे थे । जो राधिका जी पूरे घर में बिजली की तरह इधर उधर घूमती रहती थी उनकी ऐसी हालत हो जायेगी , यह तो नहीं सोचा था दिवाकर जी ने । 

उन्हें याद आया जब उन्होंने पहली बार राधिका को देखा था । जब उनकी शादी की बात चल रही थी तब राधिका का रिश्ता भी किसी रिश्तेदार के माध्यम से आया था । उन रिश्तेदार के घर पर ही देखने दिखाने का कार्यक्रम रखा गया था । तब तक दिवाकर जी दो चार लड़कियां देख चुके थे मगर जैसी लड़की वे चाहते थे वैसी तब तक मिली नहीं थी । राधिका पहली नजर में ही पसंद आ गयी थी । आंखों के माध्यम से बात दिल तक पहुंच गई थी और आंखों ने ही स्वीकृति की हरी झंडी भी दे दी थी । उस दिन से लेकर आज तक ऐसा कोई दिन नहीं था जब उनकी मुस्कुराहट से सुबह नहीं हुई हो और उनकी जुल्फों तले शाम ना हुई हो । सुखी दांपत्य का अगर किसी को कोई प्रत्यक्ष प्रमाण देखना हो तो वह दिवाकर जी और राधिका जी को देख सकता है । दिन, महीने, साल कैसे बीत गये, पता ही नहीं चला । घर गृहस्थी,  बैंक की नौकरी, बच्चों की पढाई लिखाई और उनकी शादी - ब्याह के सिलसिलों में दिन पंछी की तरह फुर्र से उड़ गये थे । 

मगर ये तीन दिन कैसे बीते, ये दिवाकर जी ही जानते थे । काश, वे कोई साहित्यकार होते तो अपने मन की व्यथा लिख पाते । मगर हर कोई न तो लेखक होता है, न गीतकार । न कवि होता है और न शायर । पता नहीं इतिहास के गर्भ में ऐसी कितनी ही अनसुनी, अनकही प्रेम कहानियां भरी पड़ी हैं जिनका पता दो दिलों के अलावा किसी को नहीं है । ऐसी ही कहानी है दिवाकर एवं राधिका जी की । 

पूरे एक महीने तक अस्पताल में रही थीं राधिका जी । उसके बाद उनकी घर पर सेवा शुरु हुई । दिवाकर जी ने अपना पत्नीव्रत धर्म निभाया । ना सुबह देखी ना रात । ना दिन देखा ना शाम देखी । सब काम किया । एक छोटी बच्ची की तरह ध्यान रखा उनका । उनकी हर फरमाइश पूरी की । उन्हें क्या अच्छा लगता है , वही करने की कोशिश की । फिजियोथेरेपिस्ट की मेहनत और दिवाकर जी की सेवा का असर ये हुआ कि राधिका जी व्हीलचेयर पर बैठने लग गई । कुछ बोलने और समझने भी लग गई । अपने घरवालों को पहचानने भी लग गईं । सात सालों से सेवा कर रहे हैं दिवाकर जी । इतनी परेशानी में दिन व्यतीत करने के पश्चात भी वे सदा मुस्कुराते रहते हैं । इस क्लब के बनने के बाद उनकी मुस्कुराहट और भी बढ गई है । उनका जीवन संघर्ष की एक मिसाल है और जिंदादिली तो उनमें कूट कूट कर भरी पड़ी है । आज भी राधिका जी को बाथरूम तक ले जाने का ध्यान भी वही रखते हैं । कर्तव्य से कभी मुंह नहीं मोड़ना और चेहरे से कभी मुस्कुराहट ओझल ना होने देना , शायद जीना इसी का नाम है । दिवाकर जी जैसे लोगों के लिए एक सैल्यूट तो बनता है । 

श्री हरि 
28.9.22 


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4 Comments

Khushbu

05-Oct-2022 03:28 PM

Nice

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Gunjan Kamal

29-Sep-2022 10:12 AM

शानदार! दिल को छूती कहानी 👏🙏🏻👌

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Hari Shanker Goyal "Hari"

30-Sep-2022 02:49 PM

बहुत बहुत आभार आपका मैम

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Reena yadav

28-Sep-2022 08:51 PM

👍👍

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